सेवा के प्रेमी श्रवण कुमार माता पिता के सच्चे सेवक ॥

 माँ बाप के प्यार की तो कोई सीमा ही नही है, वो तो हमेशा पुत्र-पुत्रियाँ को समानभाव से देखते हैं।

एक बड़ी बात जो मालूम तो हर किसी को है, परंतु उसका स्मरण नही रहता


हर माता पिता चाहते हैं कि उनका बेटा या बेटी बहुत क़ाबिल बने तमाम ख़ुशियों से भरे रहें उपलब्धि, पैसा कमाएँ लेकिन एक बात और उनके दिल में हमेशा रहती है कि वो अपनी संस्क्रति से अपने परिवार से हमेशा जुड़े रहें .

पर आज के इस युग में पढ़ना लिखना नौकरी, पेशा, व्यवसाय तो सब कर ही रहे हैं, छोटा बड़ा वो अलग बात है और इस काम काज में इतने व्यस्त हो गये हैं की ज़्यादातर संख्या अपनी संस्क्रति से , अपने परिवार से बिछड़े हुए हैं।

बहुत अच्छे पुत्र आज भी हैं जो अपने माँ बाप का श्रवणकुमार बनना चाहते हैं,  ये ख़्याल आना भी अपने आप में बड़ी बात है।


तो आज कि ये Blog हम अपने पुराने और हमेशा दिए जाने वाले  उधारण को दोबारा विख्याती के साथ पढ़ते हैं।


तो ये कहानी शुरू होती है जब-

श्रवणकुमार अपने अंधे माता पिता को लेकर अयोध्या पहुँचते हैं, नाव से तो नाव वाला होता है वो भी उन्हें पहचान लेता हैं ,श्रवणकुमार उसे नाव के किराए के रूप में सतुआ देते हैं और वो सतुआ लेने से नाव वाला मना कर देता है और नाव वाला श्रवणकुमार को जनता था बल्कि श्रवणकुमार ने उन्हें अपना परिचये भी नही दिया था ।

और वही नाव वाला ही नही बल्कि पूरे संसार सागर को ज्ञात था कि श्रवणकुमार अपने माता पिता को तीर्थ करा रहे हैं।


ऐसे बड़े एवं महान लोगों की प्रकर्ति खुद पहचान कराती है।


तो श्रवणकुमार उस दिन अयोध्या में यात्रियों के लिए बनाए घर में रुके माता पिता को प्यास लगी तो श्रवणकुमार पास की सेतु नदी पर पानी लेने गए , पानी भरते समय जो पानी की आवाज़ सुनकर राजा दशरत ने शब्द भेदी बाण चला दिया( आवाज़ की दिशा को सुनकर शब्दभेदी बाण चलाया जाता है।) जनवर समझ कर  बाण चला दिया और श्रवणकुमार के लग कर उनके प्राण निकल गये ।


तो राजा दशरथ ने गलती भी मानी , मरने से पहले श्रवणकुमार ने पानी ले जाने के लिए बोला तो राजा पानी लेकर माता पिता के पास पहुँचे राजा दशरथ ने घटित घटना के बारे में बताया तो पिता ने राजा दशरथ को ऐसे ही पुत्र वियोग झेलना होगा का श्राप दिया और माता पिता दोनो ने भी प्राण त्याग दिए। 


माता पिता का इकलोता पुत्र भगवान रूपी श्रवणकुमार संसार जब तक रहेगा उनका नाम भी जाना जाएगा 


उन ज़ेसा ना हुआ, ना होगा 



राजा दशरथ पर अनजाने में यह गलती हुई उनको इस बात का दुःख और पछतावा भी था । उन्होंने धर्मसंसद ये बात रखी और अपने लिए दंड भी माँगा और उन्हें दंड यह मिला की वो कभी भी शब्दभेदी बाण का उपयोग नही कर सकते ।


राजा दशरथ एक न्याय प्रिये, प्रजा के हित की सोचने वाले राजा थे ।

पर होता वही है जो नियति का खेल है॥



इस Blog का लिखने का उद्देश्य यह है -

माता पिता के प्रति ऐसा प्रेम करने वालों को सृष्टि अनन्त तक नमन करती है।

श्रवणकुमार की अगर 1% बात भी मानव अपने अंदर ले  लें ले तो हर तरफ़ ख़ुशियाँ होंगी, माँ बाप के चहरे पर मुस्कान होगी और सबसे बड़ी बात फिर एक भी व्रधआश्रम नही होगा ।


ऐसे महान लोगों से तो सीखा ही सीखा जा सकता है।

और इनके ऊपर लिखना भी व्याप्त नही होगा ॥




माता पिता की जय हो 🙏✨



Your Regards

Shivamtalks

 https://www.shivamtalks.com/


This blog has not been copied from anywhere, this is the original text of shivamtalks

Comments

  1. Right bhai, Parents are God, we do care of parents like a God and one day no old-age home found in world.
    Thank you Bhai for this blog and take changes in the society, superb🔥🔥

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वो करिये जो आपको अच्छा लगता है।।

बोलने से पहले हज़ार बार सोच लें